हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, अय्याम ए फ़ातिमा के अवसर पर हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के प्रतिनिधि ने बास्टा सादात के इमाम जुमा हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना सय्यद हुसैन अब्बास साहब (उर्फ़ी) से एक विशेष बात चीत की जिसमे मौलाना ने दो बातो को केंद्रित किया। उन बातो का सारांश अपने प्रिय पाठको के लिए प्रस्तुत कर रहे है।
मौलाना हुसैन अब्बास साहब ने हज़रत फ़ातिमा (सला मुल्ला अलैहा) से मख़सूस दिनो के संबंध मे कहा कि हज़रत फ़ातिमा (सला मुल्ला अलैहा) से मख़सूस दिन वे दिन हैं जिन दिनों हज़रत फ़ातिमा (सला मुल्ला अलैहा) की शहादत हुई थी। क्योंकि इतिहास में उनकी शहादत की सही तारीख के बारे में अलग-अलग राय है, इसलिए शिया मुसलमान उनकी शहादत का दुख दो अलग-अलग समय में मनाते हैं:
· फातिमा (सला मुल्ला अलैहा) के पहले दिन जमादिल अव्वल की 13वीं से 15वीं तारीख तक हैं। इस नज़रिए के अनुसार, उनकी शहादत जमदि उस सानी की 13वीं तारीख को हुई थी।
· फातिमा (सला मुल्ला अलैहा) के दूसरे दिन जमादि उस सानी की 1 से 3वीं तारीख तक हैं। इस आम नज़रिए के अनुसार, उनकी शहादत जमादि उस सानी की 3 तारीख को हुई थी।
इसलिए, 13 जमादिल अव्वल से 3 जमादि उस सानी तक के दिनों को एहतराम से "अय्याम ए फ़ातेमी" कहा जाता है, जिसमें मुसलमान, खासकर शिया भक्त, दुख मनाते हैं, मजालिस करते हैं और दुखों को याद करते हैं।
मौलाना हुसैन अब्बास ने हज़रत फातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) की शहादत पर अय्याम ए फातमिया के दौरान उलमा और ख़ुत्बा को किन बातों पर ध्यान देना चाहिए के जवाब मे कहा कि अय्याम ए फ़ातमिया का संदेश सिर्फ़ दुख नहीं है, बल्कि जागरूकता, ट्रेनिंग और जागृति भी है। उपदेशकों को इन बातों पर खास ध्यान देना चाहिए:
- ऐतिहासिक तथ्यों की सटीकताः असली सोर्स, अलग-अलग सोच के रेफरेंस और रिसर्च वाले तर्क पेश करें ताकि सुनने वालों को ज्ञान और रिसर्च पर आधारित संदेश मिले।
- खुत्बा ए फ़दक का आज का संदेशः इसमें सामाजिक न्याय, महिलाओं के अधिकार, सरकार की ज़िम्मेदारी और अहले-बैत (अ) की स्थिति जैसे बुनियादी सिद्धांत शामिल हैं और उन्हें साफ़ किया गया है।
- सय्यदा (स) के जीवन का प्रैक्टिकल पहलूः उपदेश सिर्फ़ ऐतिहासिक यादें नहीं होने चाहिए, बल्कि उनमें महिलाओं, पुरुषों, युवाओं और परिवारों के लिए प्रैक्टिकल सलाह शामिल होनी चाहिए।
- उम्माह की एकता का विचारः बयान बांटने वाले, अपमानजनक या नफ़रत भरे नहीं होने चाहिए। मकसद अहले-बैत (अलैहेमुस्सलाम) को जानना चाहिए, आलोचना करना नहीं, बल्कि शिक्षित करना और जागरूकता बढ़ाना मक़सद होना चाहिए।
- महिलाओं और युवाओं की ट्रेनिंगः पैगंबर (स) की शख्सियत को एक रोल मॉडल के तौर पर पेश करें - खासकर विनम्रता, ज्ञान, न्याय, इबादत और धार्मिक उत्साह के पहलुओं को उजागर करें।
- आज की समस्याओं से कनेक्शनः अय्याम ए फ़ातमिया के संदेश को आज की सामाजिक चुनौतियों से जोड़ें - परिवार व्यवस्था, महिलाओं का सम्मान, सामाजिक न्याय, शोषण, दबे-कुचले लोगों का साथ।
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